गर्मी क्यों बढ़ी इतनी तेज़? IIT बॉम्बे की स्टडी ने खोले मौसम के राज़

Seema Javed | Apr 16, 2025, 13:26 IST
Heatwave 2022
IIT बॉम्बे और जर्मनी की यूनिवर्सिटी की एक नई स्टडी ने खुलासा किया है कि इन दो महीनों की हीटवेव अलग-अलग कारणों से पैदा हुईं, लेकिन मिलकर उन्होंने भारत और दक्षिण एशिया को झुलसा दिया। एक तरफ ऊपरी वायुमंडल की हलचल, दूसरी तरफ ज़मीन की सूखी हालत — जानिए कैसे इन दोनों ने मिलकर हीटवेव को और ज़्यादा ख़तरनाक बना दिया।
साल 2022 के मार्च और अप्रैल महीने देश के करोड़ों लोगों के लिए किसी आपदा से कम नहीं थे। अचानक बढ़ी गर्मी ने न सिर्फ आम जनजीवन को अस्त-व्यस्त किया, बल्कि खेतों की फसलें सूख गईं, स्कूल समय से पहले बंद कर दिए गए और बिजली की मांग में रिकॉर्ड बढ़ोतरी देखने को मिली। उत्तर भारत ही नहीं, पाकिस्तान और अफगानिस्तान जैसे देशों में भी हालात बेहद गंभीर हो गए थे।
अब इस भीषण गर्मी के पीछे के असली कारणों पर IIT बॉम्बे और जर्मनी की जोहान्स गुटनबर्ग यूनिवर्सिटी, मैंज़ के वैज्ञानिकों ने एक साझा स्टडी की है। इस अध्ययन से यह सामने आया है कि मार्च और अप्रैल की हीटवेव अलग-अलग कारणों से आई थीं, लेकिन दोनों ने मिलकर दक्षिण एशिया में हालात को और बदतर बना दिया।
यह रिसर्च हाल ही में प्रतिष्ठित Journal of Geophysical Research: Atmospheres में प्रकाशित हुई है। इसका शीर्षक है: "Contrasting Drivers of Consecutive Pre-Monsoon South Asian Heatwaves in 2022."

मार्च 2022 की हीटवेव: ऊपर से आई आफ़त

स्टडी के लीड लेखक और IIT बॉम्बे के क्लाइमेट स्टडीज सेंटर के पीएचडी छात्र रोशन झा बताते हैं कि मार्च की हीटवेव मुख्य रूप से ऊपरी वायुमंडल में चल रही हवाओं की एक खास हलचल से जुड़ी थी। इसे रॉस्बी वेव्स कहा जाता है — ये ऊंचाई पर बहने वाली घुमावदार हवाएं होती हैं जो मौसम के पैटर्न को प्रभावित करती हैं।
जब उत्तरी ध्रुव के पास चलने वाली एक्स्ट्रा-ट्रॉपिकल जेट स्ट्रीम और भूमध्य रेखा के पास की सबट्रॉपिकल जेट स्ट्रीम पास आ जाती हैं, तो इनके बीच ऊर्जा का आदान-प्रदान तेज़ हो जाता है। इससे रॉस्बी वेव्स की ताकत अचानक बढ़ती है, जिससे भारत समेत पूरे दक्षिण एशिया में गर्मी की लहर चलने लगती है।

अप्रैल 2022 की हीटवेव: ज़मीन से निकली तपिश

मार्च के मुकाबले अप्रैल की हीटवेव की वजहें ज़्यादा "स्थानीय" थीं। IIT बॉम्बे की एसोसिएट प्रोफेसर अर्पिता मोंडल बताती हैं, “अप्रैल में तापमान बढ़ने का मुख्य कारण था — ज़मीन का सूख जाना और गर्म हवाओं का बहाव।”
जब मिट्टी में नमी होती है, तो सूरज की किरणों से प्राप्त ऊर्जा का बड़ा हिस्सा उस नमी को उड़ाने में लग जाता है। इससे वातावरण में ज़्यादा गर्मी नहीं फैलती। लेकिन अगर ज़मीन पहले से ही सूखी हो — जैसा कि मार्च की हीटवेव के बाद हुआ — तो पूरी धूप सीधे हवा को गर्म करती है।
इसी के साथ-साथ पाकिस्तान और अफगानिस्तान से उठने वाली गर्म हवाएं जब भारत में दाखिल हुईं, तो पहले से तपती हुई ज़मीन ने उन्हें और ज़्यादा खतरनाक बना दिया।

यह स्टडी क्यों है अहम?

इस रिसर्च के सह-लेखक और IIT बॉम्बे के प्रोफेसर सुबिमल घोष कहते हैं, “हम आमतौर पर हीटवेव को एकल घटना मानते हैं, लेकिन यह स्टडी बताती है कि जब एक हीटवेव के बाद दूसरी आती है, तो उसका असर कहीं ज़्यादा गंभीर हो सकता है।”
इस नई समझ से हमें हीटवेव की बेहतर भविष्यवाणी करने में मदद मिल सकती है। इसके साथ ही, सरकारें और स्थानीय प्रशासन समय रहते तैयारी कर सकते हैं — जैसे स्कूलों का समय बदलना, स्वास्थ्य सेवाएं बढ़ाना, और किसानों को पहले से चेतावनी देना।
मार्च और अप्रैल 2022 की भीषण गर्मी सिर्फ मौसम का संयोग नहीं थी, बल्कि वायुमंडलीय और सतही कारणों की एक श्रृंखला थी, जिसने मिलकर दक्षिण एशिया को झुलसा दिया। IIT बॉम्बे और जोहान्स गुटनबर्ग यूनिवर्सिटी की यह स्टडी इस दिशा में एक अहम कड़ी जोड़ती है, जिससे भविष्य में हीटवेव से बचाव की रणनीतियाँ और अधिक प्रभावी बन सकती हैं।
https://youtu.be/zX64d6KY0j8?si=TTDvIAwXCp9k1JxX

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