आदिवासी लड़कियों की पहल बनी मिसाल, खुद की सुरक्षा खुद के हाथ
आदिवासी लड़कियों की पहल बनी मिसाल, खुद की सुरक्षा खुद के हाथ

By Madhu Sudan Chatterjee

बंगाल के जंगलमहल में आदिवासी लड़कियों ने आत्मरक्षा को हथियार बना लिया है। एक घटना ने जहां पूरे इलाके को झकझोरा, वहीं लड़कियों ने डर के बजाय लड़ने का रास्ता चुना। जानिए कैसे ये लड़कियां अपने हौसलों से उदाहरण बन रही हैं।

बंगाल के जंगलमहल में आदिवासी लड़कियों ने आत्मरक्षा को हथियार बना लिया है। एक घटना ने जहां पूरे इलाके को झकझोरा, वहीं लड़कियों ने डर के बजाय लड़ने का रास्ता चुना। जानिए कैसे ये लड़कियां अपने हौसलों से उदाहरण बन रही हैं।

इनकी बाग में हैं आम की 352 से अधिक किस्में, जहाँ साल भर मिलेंगे फल
इनकी बाग में हैं आम की 352 से अधिक किस्में, जहाँ साल भर मिलेंगे फल

By Divendra Singh

लखनऊ की इस बाग 352 से अधिक किस्मों के आम उगाते हैं एस.सी. शुक्ला, जिन्हें लोग ‘मैंगो मैन’ कहते हैं। आम उनके लिए सिर्फ फल नहीं, बल्कि संस्कृति, विज्ञान और भावनाओं का संगम हैं। हर साल उनकी आम प्रदर्शनी बिना किसी टिकट के लोगों को स्वाद, विरासत और विविधता का अनुभव देती है। जानिए उनके इस जुनून की कहानी।

लखनऊ की इस बाग 352 से अधिक किस्मों के आम उगाते हैं एस.सी. शुक्ला, जिन्हें लोग ‘मैंगो मैन’ कहते हैं। आम उनके लिए सिर्फ फल नहीं, बल्कि संस्कृति, विज्ञान और भावनाओं का संगम हैं। हर साल उनकी आम प्रदर्शनी बिना किसी टिकट के लोगों को स्वाद, विरासत और विविधता का अनुभव देती है। जानिए उनके इस जुनून की कहानी।

प्राकृतिक खेती से जीवन में क्रांति: पिछले 16 साल में दवाई पर नहीं खर्च किया एक भी रुपया
प्राकृतिक खेती से जीवन में क्रांति: पिछले 16 साल में दवाई पर नहीं खर्च किया एक भी रुपया

By Manvendra Singh

प्रदूषित खेती और बढ़ती बीमारियों के इस दौर में उत्तर प्रदेश के किसान प्रदीप दीक्षित ने एक अनोखा रास्ता चुना - प्राकृतिक खेती। पिछले 16 सालों से न उन्होंने कोई दवा खाई, न अपने खेतों में कोई रसायन डाला। उनके खेत अब ज़हरमुक्त हैं, मिट्टी फिर से ज़िंदा हो गई है और परिवार पूरी तरह स्वस्थ है। यह कहानी बताती है कि अगर इरादा मजबूत हो, तो मिट्टी और जीवन दोनों को स्वस्थ बनाया जा सकता है- बिना ज़हर, बिना दवाई।

प्रदूषित खेती और बढ़ती बीमारियों के इस दौर में उत्तर प्रदेश के किसान प्रदीप दीक्षित ने एक अनोखा रास्ता चुना - प्राकृतिक खेती। पिछले 16 सालों से न उन्होंने कोई दवा खाई, न अपने खेतों में कोई रसायन डाला। उनके खेत अब ज़हरमुक्त हैं, मिट्टी फिर से ज़िंदा हो गई है और परिवार पूरी तरह स्वस्थ है। यह कहानी बताती है कि अगर इरादा मजबूत हो, तो मिट्टी और जीवन दोनों को स्वस्थ बनाया जा सकता है- बिना ज़हर, बिना दवाई।

जब खुशबू ने उठाई आवाज़, तो बहनों को मिली आज़ादी
जब खुशबू ने उठाई आवाज़, तो बहनों को मिली आज़ादी

By Gaon Connection

खुशबू ने सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि अपनी बहनों के सपनों के लिए भी एक लंबी लड़ाई लड़ी। पितृसत्तात्मक सोच, तानों और बंदिशों के खिलाफ डटकर खड़ी हुई, ताकि उसकी बहनें बिना डर अपने भविष्य की ओर बढ़ सकें। यह कहानी है एक ग्रामीण लड़की की, जिसने हिम्मत और जागरूकता से न सिर्फ अपने घर की सोच बदली, बल्कि पूरे समाज के लिए मिसाल बन गई।

खुशबू ने सिर्फ अपने लिए नहीं, बल्कि अपनी बहनों के सपनों के लिए भी एक लंबी लड़ाई लड़ी। पितृसत्तात्मक सोच, तानों और बंदिशों के खिलाफ डटकर खड़ी हुई, ताकि उसकी बहनें बिना डर अपने भविष्य की ओर बढ़ सकें। यह कहानी है एक ग्रामीण लड़की की, जिसने हिम्मत और जागरूकता से न सिर्फ अपने घर की सोच बदली, बल्कि पूरे समाज के लिए मिसाल बन गई।

कभी दिहाड़ी मजदूरी करते थे; आज 11 किताबों के लेखक हैं
कभी दिहाड़ी मजदूरी करते थे; आज 11 किताबों के लेखक हैं

By Akankhya Rout

एक दिहाड़ी मजदूर, जो कभी शराब के नशे में धुत रहा करता था; आज किताबों के नशे में डूबा रहता है। जिसे कभी प्रकाशकों ने ये कह कर वापस कर दिया था कि भला एक मजदूर कैसे किताब लिख सकता है? उन्होंने आज 11 किताबें लिख दी हैं।

एक दिहाड़ी मजदूर, जो कभी शराब के नशे में धुत रहा करता था; आज किताबों के नशे में डूबा रहता है। जिसे कभी प्रकाशकों ने ये कह कर वापस कर दिया था कि भला एक मजदूर कैसे किताब लिख सकता है? उन्होंने आज 11 किताबें लिख दी हैं।

राकेश खत्री; जिन्होंने गौरैया के लिए बनाएं हैं 73 हज़ार से ज़्यादा घोंसले
राकेश खत्री; जिन्होंने गौरैया के लिए बनाएं हैं 73 हज़ार से ज़्यादा घोंसले

By Gaon Connection

राकेश खत्री; जिन्हें लोग Nest Man of India के नाम से जानते हैं; उन्होंने देश भर में 7,30,000 से ज़्यादा घोंसले बना दिए हैं, जिनमें गौरैया रहने लगीं हैं।

राकेश खत्री; जिन्हें लोग Nest Man of India के नाम से जानते हैं; उन्होंने देश भर में 7,30,000 से ज़्यादा घोंसले बना दिए हैं, जिनमें गौरैया रहने लगीं हैं।

मुंबई की ज़िंदगी छोड़ स्पीति के दूर पहाड़ी गाँव में शुरू किया फ्री बोर्डिंग स्कूल
मुंबई की ज़िंदगी छोड़ स्पीति के दूर पहाड़ी गाँव में शुरू किया फ्री बोर्डिंग स्कूल

By Akankhya Rout

बर्फ़ की चादर से लिपटे पहाड़ों और तीन फीट बर्फ़ से जमी हुई सड़कों के बीच, जहाँ बिजली और इंटरनेट कनेक्टिविटी भी बड़ी मुश्किल से पहुँचती है वहाँ पर शहर की सुख-सुविधाओं को छोड़कर पोर्शिया बस गई हैं, ताकि स्पीति के बच्चों की शिक्षा के लिए कुछ कर सकें।

बर्फ़ की चादर से लिपटे पहाड़ों और तीन फीट बर्फ़ से जमी हुई सड़कों के बीच, जहाँ बिजली और इंटरनेट कनेक्टिविटी भी बड़ी मुश्किल से पहुँचती है वहाँ पर शहर की सुख-सुविधाओं को छोड़कर पोर्शिया बस गई हैं, ताकि स्पीति के बच्चों की शिक्षा के लिए कुछ कर सकें।

महिलाओं के इस स्टार्टअप से आपको भी सीखना चाहिए
महिलाओं के इस स्टार्टअप से आपको भी सीखना चाहिए

By Manvendra Singh

कल को दूसरों के घरों में काम करने वाली ये महिलाएं आज आत्मनिर्भर हैं, ये खुद का व्यवसाय करती हैं, अब इन्हें डाँट नहीं सुननी पड़ती, इनकी कोशिश है कि इनके आसपास की हर एक महिला को चार पैसे के लिए किसी के सामने हाथ न फैलाना पड़े।

कल को दूसरों के घरों में काम करने वाली ये महिलाएं आज आत्मनिर्भर हैं, ये खुद का व्यवसाय करती हैं, अब इन्हें डाँट नहीं सुननी पड़ती, इनकी कोशिश है कि इनके आसपास की हर एक महिला को चार पैसे के लिए किसी के सामने हाथ न फैलाना पड़े।

जिनके अंतिम समय में कोई नहीं होता, उनके लिए ये महिलाएं खड़ी रहती हैं
जिनके अंतिम समय में कोई नहीं होता, उनके लिए ये महिलाएं खड़ी रहती हैं

By Akankhya Rout

महिला दिवस पर पढ़िए ओडिशा की चार महिलाओं की कहानी जो ऐसे लोगों के अंतिम समय में साथ खड़ी रहती हैं, जिन्हें अपने भी छोड़ देते हैं।

महिला दिवस पर पढ़िए ओडिशा की चार महिलाओं की कहानी जो ऐसे लोगों के अंतिम समय में साथ खड़ी रहती हैं, जिन्हें अपने भी छोड़ देते हैं।

अब पीरियड्स के नाम पर नहीं हिचकिचाती हैं गाँव की लड़कियाँ
अब पीरियड्स के नाम पर नहीं हिचकिचाती हैं गाँव की लड़कियाँ

By Akankhya Rout

एक इंजीनियर इन दिनों एक नई मुहिम चला रहा है, उनका साथ पाकर अब लड़कियाँ पीरियड्स पर फुसफुसाकर नहीं, खुल कर बात करने लगी हैं।

एक इंजीनियर इन दिनों एक नई मुहिम चला रहा है, उनका साथ पाकर अब लड़कियाँ पीरियड्स पर फुसफुसाकर नहीं, खुल कर बात करने लगी हैं।

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