World Sepsis Day: इस बीमारी से हर साल होती है लाखों लोगों की मौत, सही समय पर पहचान से बच सकती है जान

Divendra Singh | Sep 13, 2024, 09:49 IST

हर साल 13 सितंबर को विश्व सेप्सिस दिवस मनाया जाता है, ताकि सेप्सिस के बारे में जागरूकता फैलाई जा सके। यह दिन हमें इस गंभीर समस्या से लड़ने के लिए एकजुट होने का अवसर देता है।

सेप्सिस, एक गंभीर और जीवन-घातक स्थिति है, जो तब उत्पन्न होती है जब शरीर में किसी संक्रमण के प्रति प्रतिक्रिया के कारण व्यापक सूजन और ऊतक क्षति होती है। इसका समय रहते और सटीक इलाज ज़रूरी है ताकि मरीज की जान बचाई जा सके। केजीएमयू, लखनऊ के पल्मोनरी डिपार्टमेंट के हेड प्रोफेसर (डॉ.) वेद प्रकाश बता रहे हैं कि कैसे सेप्सिस की सही समय पर पहचान जीवन रक्षा का रामबाण है और एंटीबायोटिक्स का दुरुपयोग भविष्य में गंभीर समस्याओं का कारण बन सकता है।

सेप्सिस के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य:






  1. सेप्सिस किसे प्रभावित करता है?सेप्सिस सभी आयु और पृष्ठभूमि के लोगों को प्रभावित कर सकता है। हर साल लगभग 5 करोड़ लोग सेप्सिस से पीड़ित होते हैं, और इनमें से लगभग 1 करोड़ 10 लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है।
  2. मुख्य कारणसेप्सिस आमतौर पर निमोनिया, मूत्र पथ संक्रमण, या सर्जिकल साइट संक्रमण से होता है। डायबिटीज़, कैंसर, और इम्यूनोसप्रेसेंट दवाओं का सेवन करने वाले लोग सेप्सिस के अधिक शिकार होते हैं।
  3. आर्थिक प्रभावसेप्सिस से वैश्विक अर्थव्यवस्था को हर साल लगभग ₹5 लाख 15 हजार करोड़ का नुकसान होता है। इसमें प्रत्यक्ष चिकित्सा लागत और अप्रत्यक्ष लागत शामिल हैं।
  4. भारत में स्थितिभारत में प्रतिवर्ष लगभग 1 करोड़ 10 लाख व्यक्ति सेप्सिस से प्रभावित होते हैं, जिनमें से 30 लाख की मौत हो जाती है। भारत की मृत्यु दर प्रति 100,000 लोगों पर 213 है, जो वैश्विक औसत से काफी अधिक है। आईसीयू में भर्ती मरीजों में से 50% से अधिक सेप्सिस से पीड़ित होते हैं, और इनमें से 45% मामले मल्टी-ड्रग रेसिस्टेंट बैक्टीरिया के कारण होते हैं।
  5. बच्चों और बुजुर्गों पर असरवैश्विक स्तर पर सेप्सिस के 40% मामले पांच साल से कम उम्र के बच्चों में होते हैं। बुजुर्ग और नवजात शिशु सेप्सिस के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं क्योंकि उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होती है।

सेप्सिस के लक्षण:

  • बुखार या ठंड लगना
  • हृदय गति का तेज होना
  • तेज़ सांस लेना या सांस फूलना
  • भ्रम या मानसिक स्थिति में बदलाव
  • निम्न रक्तचाप
  • अंगों की कार्यक्षमता में कमी जैसे मूत्र उत्पादन में कमी, पेट दर्द
  • त्वचा का रंग बदलना
  • सेप्टिक शॉक (सबसे गंभीर स्थिति)

सेप्सिस का निदान:

सेप्सिस की पहचान करने के लिए निम्नलिखित प्रक्रियाएं अपनाई जाती हैं:
  • नैदानिक मूल्यांकन: रोगी के इतिहास और लक्षणों का आकलन।
  • प्रयोगशाला परीक्षण: रक्त परीक्षण, सीआरपी, प्रोकैल्सीटोनिन के स्तर को मापा जाता है।
  • इमेजिंग: एक्स-रे और सीटी स्कैन से संक्रमण के स्रोत की पहचान।
  • सूक्ष्मजीव परीक्षण: रोगजनकों की पहचान कर लक्षित एंटीबायोटिक उपचार किया जाता है।

सेप्सिस का इलाज:

  1. शीघ्र उपचार: सेप्सिस के शुरुआती संकेतों की पहचान कर तुरंत उपचार शुरू करना आवश्यक है।
  2. एंटीबायोटिक थेरेपी: ब्रॉड-स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग किया जाता है।
  3. संक्रमण स्रोत को नियंत्रित करना: सर्जिकल प्रक्रियाओं से संक्रमित ऊतकों को हटाना।
  4. ऑक्सीजन थेरेपी: मरीज की श्वसन स्थिति में सुधार लाने के लिए ऑक्सीजन सपोर्ट दिया जाता है।
  5. अंग समर्थन: डायलिसिस या हृदय सपोर्ट जैसी प्रक्रियाएं अपनाई जाती हैं।
  6. ग्लूकोज नियंत्रण: रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रण में रखना।
  7. कॉर्टिकोस्टेरॉइड्स का उपयोग: कुछ मामलों में सूजन को कम करने के लिए किया जाता है।

सेप्सिस रोकथाम:

सेप्सिस को टीकाकरण, स्वच्छता, और सही देखभाल से रोका जा सकता है। शीघ्र पहचान और उपचार से मृत्यु दर को 50% तक कम किया जा सकता है।
https://youtu.be/laZASfWhNao?si=T5qQkUnWQ0T-6-YH
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