By Dr SB Misra
आजकल दिन-प्रतिदिन उच्च शिक्षा की आवश्यकता पड़ती जा रही है — फिर चाहे कंप्यूटर, एयरोनॉटिक्स अथवा अन्य क्षेत्रों की बात हो। अब तो ए.आई. अर्थात आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का युग आने वाला है और उसके लिए उच्च शिक्षा का महत्व और भी बढ़ गया है।
आजकल दिन-प्रतिदिन उच्च शिक्षा की आवश्यकता पड़ती जा रही है — फिर चाहे कंप्यूटर, एयरोनॉटिक्स अथवा अन्य क्षेत्रों की बात हो। अब तो ए.आई. अर्थात आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का युग आने वाला है और उसके लिए उच्च शिक्षा का महत्व और भी बढ़ गया है।
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आज के समय में गाँव-गाँव में प्राइमरी स्कूल खुले हैं और हर पंचायत में एक सीनियर प्राइमरी यानी कक्षा 6, 7, 8 के लिए विद्यालय मौजूद है। पहले की अपेक्षा अच्छे भवन हैं, अधिक संख्या में अध्यापक, कुर्सी, मेज, ब्लैकबोर्ड सब कुछ है। लेकिन फिर भी शिक्षा का स्तर दयनीय है।
आज के समय में गाँव-गाँव में प्राइमरी स्कूल खुले हैं और हर पंचायत में एक सीनियर प्राइमरी यानी कक्षा 6, 7, 8 के लिए विद्यालय मौजूद है। पहले की अपेक्षा अच्छे भवन हैं, अधिक संख्या में अध्यापक, कुर्सी, मेज, ब्लैकबोर्ड सब कुछ है। लेकिन फिर भी शिक्षा का स्तर दयनीय है।
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आज के समय में गाँव-गाँव में प्राइमरी स्कूल खुले हैं और हर पंचायत में एक सीनियर प्राइमरी यानी कक्षा 6, 7, 8 के लिए विद्यालय मौजूद है। पहले की अपेक्षा अच्छे भवन हैं, अधिक संख्या में अध्यापक, कुर्सी, मेज, ब्लैकबोर्ड सब कुछ है। लेकिन फिर भी शिक्षा का स्तर दयनीय है।
आज के समय में गाँव-गाँव में प्राइमरी स्कूल खुले हैं और हर पंचायत में एक सीनियर प्राइमरी यानी कक्षा 6, 7, 8 के लिए विद्यालय मौजूद है। पहले की अपेक्षा अच्छे भवन हैं, अधिक संख्या में अध्यापक, कुर्सी, मेज, ब्लैकबोर्ड सब कुछ है। लेकिन फिर भी शिक्षा का स्तर दयनीय है।
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आज के समय में गाँव-गाँव में प्राइमरी स्कूल खुले हैं और हर पंचायत में एक सीनियर प्राइमरी यानी कक्षा 6, 7, 8 के लिए विद्यालय मौजूद है। पहले की अपेक्षा अच्छे भवन हैं, अधिक संख्या में अध्यापक, कुर्सी, मेज, ब्लैकबोर्ड सब कुछ है। लेकिन फिर भी शिक्षा का स्तर दयनीय है।
आज के समय में गाँव-गाँव में प्राइमरी स्कूल खुले हैं और हर पंचायत में एक सीनियर प्राइमरी यानी कक्षा 6, 7, 8 के लिए विद्यालय मौजूद है। पहले की अपेक्षा अच्छे भवन हैं, अधिक संख्या में अध्यापक, कुर्सी, मेज, ब्लैकबोर्ड सब कुछ है। लेकिन फिर भी शिक्षा का स्तर दयनीय है।
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आज के समय में गाँव-गाँव में प्राइमरी स्कूल खुले हैं और हर पंचायत में एक सीनियर प्राइमरी यानी कक्षा 6, 7, 8 के लिए विद्यालय मौजूद है। पहले की अपेक्षा अच्छे भवन हैं, अधिक संख्या में अध्यापक, कुर्सी, मेज, ब्लैकबोर्ड सब कुछ है। लेकिन फिर भी शिक्षा का स्तर दयनीय है।
आज के समय में गाँव-गाँव में प्राइमरी स्कूल खुले हैं और हर पंचायत में एक सीनियर प्राइमरी यानी कक्षा 6, 7, 8 के लिए विद्यालय मौजूद है। पहले की अपेक्षा अच्छे भवन हैं, अधिक संख्या में अध्यापक, कुर्सी, मेज, ब्लैकबोर्ड सब कुछ है। लेकिन फिर भी शिक्षा का स्तर दयनीय है।
By Dr SB Misra
भारत में संचार माध्यमों की यात्रा अनोखी रही है। कभी हल्कारा और डुग्गी के जरिए संदेश पहुँचाए जाते थे, तो आज डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हावी है। जानिए कैसे स्वतंत्रता संग्राम, अखबार, रेडियो, टीवी और विज्ञापनों ने संचार की विश्वसनीयता को आकार दिया।
भारत में संचार माध्यमों की यात्रा अनोखी रही है। कभी हल्कारा और डुग्गी के जरिए संदेश पहुँचाए जाते थे, तो आज डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हावी है। जानिए कैसे स्वतंत्रता संग्राम, अखबार, रेडियो, टीवी और विज्ञापनों ने संचार की विश्वसनीयता को आकार दिया।
By Dr SB Misra
भारत विभाजन को लेकर आज भी बहस जारी है। उस समय तीन प्रमुख हस्ताक्षरों - नेहरू, जिन्ना और माउंटबेटन - ने इतिहास की दिशा तय की। गांधी जी कट्टर विरोधी थे और आख़िरी क्षण तक विभाजन रोकने की कोशिश करते रहे। लेकिन क्या बँटवारा टाला जा सकता था? और असली जिम्मेदारी किसकी थी - नेताओं की महत्वाकांक्षा, अंग्रेज़ों की रणनीति या हालात की मजबूरी? यह लेख उन्हीं सवालों पर गहराई से नज़र डालता है।
भारत विभाजन को लेकर आज भी बहस जारी है। उस समय तीन प्रमुख हस्ताक्षरों - नेहरू, जिन्ना और माउंटबेटन - ने इतिहास की दिशा तय की। गांधी जी कट्टर विरोधी थे और आख़िरी क्षण तक विभाजन रोकने की कोशिश करते रहे। लेकिन क्या बँटवारा टाला जा सकता था? और असली जिम्मेदारी किसकी थी - नेताओं की महत्वाकांक्षा, अंग्रेज़ों की रणनीति या हालात की मजबूरी? यह लेख उन्हीं सवालों पर गहराई से नज़र डालता है।
By Dr SB Misra
गाँवों में बच्चों को डराकर या परंपराओं के नाम पर जो अंधविश्वास पनपते हैं, वे केवल डर नहीं फैलाते, बल्कि वैज्ञानिक सोच को भी दबा देते हैं। कैसे झाड़-फूंक, भूत-प्रेत, बिल्ली के रास्ता काटने जैसी बातें आज भी लोगों को भ्रमित कर रही हैं और क्यों ज़रूरी है कि हम शिक्षा और तर्क की मदद से इनसे बाहर निकलें।
गाँवों में बच्चों को डराकर या परंपराओं के नाम पर जो अंधविश्वास पनपते हैं, वे केवल डर नहीं फैलाते, बल्कि वैज्ञानिक सोच को भी दबा देते हैं। कैसे झाड़-फूंक, भूत-प्रेत, बिल्ली के रास्ता काटने जैसी बातें आज भी लोगों को भ्रमित कर रही हैं और क्यों ज़रूरी है कि हम शिक्षा और तर्क की मदद से इनसे बाहर निकलें।
By Dr SB Misra
भारतीय लोकतंत्र की सफलता सिर्फ सत्ता पक्ष पर नहीं, बल्कि विपक्ष की जिम्मेदारी पर भी निर्भर करती है। लेकिन जब संसद में चर्चा की जगह शोरगुल और सड़क पर केवल लांछन दिखाई दे, तो यह सोचने का समय है कि क्या हम अपने लोकतांत्रिक आदर्शों से भटक रहे हैं।
भारतीय लोकतंत्र की सफलता सिर्फ सत्ता पक्ष पर नहीं, बल्कि विपक्ष की जिम्मेदारी पर भी निर्भर करती है। लेकिन जब संसद में चर्चा की जगह शोरगुल और सड़क पर केवल लांछन दिखाई दे, तो यह सोचने का समय है कि क्या हम अपने लोकतांत्रिक आदर्शों से भटक रहे हैं।
By Dr SB Misra
भारत ने 1947 के बाद आज़ादी के संघर्ष से लेकर चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने तक लंबा सफर तय किया है। गाँव पोस्टकार्ड का ये लेख नेहरू की तटस्थ विदेश नीति से लेकर आज के सामाजिक बदलावों तक भारत के उतार-चढ़ाव भरे रास्ते को समझाता है- जहाँ वयस्क मताधिकार बना रहा, लेकिन सामाजिक सौहार्द डगमगाता रहा। क्या यह प्रगति काफी थी? और किसने रोका भारत को और आगे बढ़ने से?
भारत ने 1947 के बाद आज़ादी के संघर्ष से लेकर चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने तक लंबा सफर तय किया है। गाँव पोस्टकार्ड का ये लेख नेहरू की तटस्थ विदेश नीति से लेकर आज के सामाजिक बदलावों तक भारत के उतार-चढ़ाव भरे रास्ते को समझाता है- जहाँ वयस्क मताधिकार बना रहा, लेकिन सामाजिक सौहार्द डगमगाता रहा। क्या यह प्रगति काफी थी? और किसने रोका भारत को और आगे बढ़ने से?
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