कांकेर: विलुप्त हो रही काले चावल की किस्म को बचाने की पहल

Tameshwar Sinha | Jul 20, 2020, 06:26 IST
कांकेर: विलुप्त हो रही काले चावल की किस्म को बचाने की पहल
किसानों को जैविक तरीके और श्री विधि से काले चावल की खेती के लिए जागरूक किया जा रहा है, बाजार में काले चावल की अच्छी कीमत भी मिल जाती है।
कांकेर (छत्तीसगढ़)। औषधीय गुणों से भरपूर काले चावल की खेती किसानों की आमदनी बढ़ाएगी, कृषि विभाग धान की विलुप्त हो रही देसी किस्मों को बचाने में किसानों का सहयोग कर रहा है। इस बार कई किसानों को काले चावल का बीज दिया गया, साथ ही तकनीकि जानकारी भी दी जा रही है।
कांकेर जिले के किसान शैलेश नागवंशी ने इस बार एक एकड़ में काले चावल की खेती है। वो बताते हैं, "इस बार हम लोग ब्लैक राइस की खेती कर रहे हैं, जो बहुत फायदेमंद होता है, कई सारी बीमारियों से हमें बचाता है। अभी तक हम इस धान के बारे में सिर्फ सुने थे, इस बार मौका मिला। कृषि विभाग की तरफ से ब्लैक राइस का बीज मिला, हमें भी लगा कि कुछ नया करना चाहिए। इसलिए हमने अभी इसे लगाया है।"

छत्तीसगढ़ के बस्तर, बलरामपुर, बीजापुर, बिलासपुर, दंतेवाड़ा, धमरतरी, जशपुर, कांकेर, कवरदहा, कोरिया, नरायणपुर, राजनंदगाँव, सरगुजा जैसे जिलों में धान की अच्छी खेती है। यहां की मिट्टी धान की खेती के लिए बहुत अच्छी होती है। पूरे प्रदेश का ज्यादातर धान का उत्पादन इन्हीं जिलों में होता है। कई जिलों में तो साल में दो बार धान की खेती होती है।
शैलेश नागवंशी आगे कहते हैं, "कृषि विभाग की तरफ से हमें बीज के साथ ही जैविक खाद, दवाई छिड़कने का स्प्रेयर भी मिला है। यही नहीं कृषि विशेषज्ञों का तकनीकि सहयोग भी पूरा मिल रहा है। जैसे-जैसे वो हमें बता रहे हैं, उसी तरह हम पूरी खेती कर रहे हैं। अभी एक एकड़ में ब्लैक राइस लगाया है। पहली बार है, अगर अच्छा रिजल्ट मिलेगा तो और भी लगाएंगे।"
छत्तीसगढ़ में पुराने समय से ही काले चावल की तुलसी घाटी, गुड़मा धान, मरहन धान जैसी कई पुरानी किस्मों की खेती होती आ रही है। लेकिन पिछले कुछ साल में हाइब्रिड धान के आ जाने से देसी किस्में विलुप्त होने को आ गई थीं। कृषि विभाग ऐसी ही पुरानी किस्मों को सहेजने और किसानों को धान की खासियतें बताने में जुटा हुआ है।

इस बार कांकेर जिले में 10 एकड़ में इसकी खेती की जा रही है, आने वाले समय में इसका रकबा और भी बढ़ जाएगा। कृषि अधिकारियों के अनुसार काले चावल की अच्छी कीमत होने से किसानों को इसका मुनाफा भी अच्छा मिलेगा।
कांकेर जिले के कृषि अधिकारी विश्वेश्वर नेताम बताते हैं, "कांकेर जिले में हम पहली बार ब्लैक राइस की खेती कर रहे हैं। ये खेती पूरी तरह से जैविक तरीके से की जा रही है। तो हम परंपरागत खेती करते थे, ये उसी का एक रूप है। आजकल तो जो भी खेती करता है, उसमें फर्टिलाइजर का प्रयोग करता है। बिना फर्टिलाइजर का तो धान होता ही नहीं है। लेकिन इसमें हम लोगों की कोशिश ये रहेगी कि हमारी पूरी तरह से जैविक तरीके से ही खेती करें। ये चावल खाने में भी बहुत बढ़िया होता है। ये बस्तर की चावल की किस्म है, जिसे हम बढ़ावा दे रहे हैं। किसानों की खेत में श्री विधि पद्दति से काले धान का बीज का रोपण कर किसानों को प्रोत्साहित कर इसका फायदा बताते हुए रसायन मुक्त खेती करने का सलाह दे रहे हैं।"
छत्तीसगढ़ में करीब 43 लाख किसान परिवार हैं और धान यहां की मुख्य फसल है। यहां लगभग 3.7 मिलियन हेक्टेयर में धान की खेती होती है, जिसमें ज्यादा खेती वर्षा जल पर आधारित है।
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