बिना नुकसान पहुंचाए धान की नस्लों की जांच: वैज्ञानिकों की नई खोज

Gaon Connection | Jul 19, 2025, 16:09 IST

X-ray इमेजिंग तकनीक अब धान के दानों की गुणवत्ता जाँचने के लिए पारंपरिक तरीकों का विकल्प बन रही है, वह भी बिना दानों को काटे या नुकसान पहुँचाए। ICRISAT और अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की इस संयुक्त पहल ने चावल के फिजिकल ट्रेट्स की जांच के लिए एक तेज़, सटीक तकनीक विकसित की है।

वैश्विक खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए कृषि क्षेत्र पर निरंतर दबाव बना हुआ है। बढ़ती जनसंख्या, जलवायु परिवर्तन और घटते प्राकृतिक संसाधनों के चलते यह ज़रूरी हो गया है कि हम पारंपरिक कृषि अनुसंधान विधियों से आगे बढ़ें और ऐसी तकनीकों का प्रयोग करें जो तेज़, सटीक और टिकाऊ हों।
फसल सुधार, विशेष रूप से चावल जैसी प्रमुख फसलों के मामले में, अब महज़ वर्षों नहीं बल्कि महीनों में परिणाम देने वाले टूल्स की ज़रूरत है। इसी दिशा में वैज्ञानिकों द्वारा एक महत्वपूर्ण पहल की गई है — X-ray इमेजिंग तकनीक के माध्यम से चावल के दानों की भौतिक विशेषताओं का मूल्यांकन, वह भी बिना दानों को नुकसान पहुँचाए।
इस अध्ययन में यह देखा गया कि कैसे पारंपरिक तरीकों के बजाय X-ray इमेजिंग का उपयोग कर दानों की लंबाई, चौड़ाई, मोटाई, सतह क्षेत्र और संरचना जैसे गुणों को 2D इमेज के माध्यम से मापा जा सकता है। यह प्रक्रिया पूरी तरह नॉन-डिस्ट्रक्टिव है, यानी इससे बीज को कोई नुकसान नहीं होता।
पारंपरिक तरीके जैसे दानों को काटना, सुखाना या पीसना, जहाँ एक ओर समय लेने वाले और संसाधन-संवेदनशील होते हैं, वहीं दूसरी ओर वे नमूनों को दोबारा उपयोग के योग्य नहीं छोड़ते। लेकिन X-ray इमेजिंग इन सभी सीमाओं को पार करती है।
शोध में देखा गया कि इस तकनीक से प्राप्त डाटा पारंपरिक विधियों जितना ही सटीक है, और कई बार उससे बेहतर भी। इससे वैज्ञानिकों को बड़ी संख्या में धान की किस्मों का मूल्यांकन कम समय में करने की सुविधा मिलती है। उदाहरण के लिए, अगर किसी ब्रीडिंग प्रोग्राम में 500 से अधिक किस्मों का मूल्यांकन करना हो, तो X-ray तकनीक उस काम को कुछ ही दिनों में पूरा कर सकती है, जो पहले कई सप्ताह लेता था। इससे उच्च गुणवत्ता वाली, जलवायु-सहिष्णु और अधिक उपज देने वाली किस्मों का चयन तेज़ी से किया जा सकता है।
यह तकनीक विशेष रूप से उन अनुसंधान संस्थानों के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकती है जो बायोइमेजिंग, डेटा एनालिसिस और जर्मप्लाज्म मूल्यांकन पर कार्य कर रहे हैं। इस नवाचारी अध्ययन को ICRISAT, IRRI, CZU, Fraunhofer Institute for Integrated Circuits IIS सहित कई संस्थानों के वैज्ञानिकों ने मिलकर अंजाम दिया है। यह शोध Plant Methods नामक प्रतिष्ठित जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
शोध के अनुसार, धान की विविध किस्मों के X-ray चित्रों से प्राप्त आकृतियों और आयामों को कंप्यूटर विज़न और इमेज प्रोसेसिंग एल्गोरिदम के ज़रिए विश्लेषित किया गया। MATLAB और Python जैसे टूल्स का प्रयोग कर सटीक डेटा निकाला गया, जिससे वैज्ञानिक यह निष्कर्ष निकाल पाए कि कौन-सी किस्म बेहतर आकार, घनत्व और उत्पादकता क्षमता रखती है।
यह तकनीक केवल धान तक सीमित नहीं है। इसकी उपयोगिता मक्का, गेहूं, चना, बाजरा और अन्य अनाजों में भी साबित की जा सकती है। इससे बीज गुणवत्ता परीक्षण, भंडारण क्षमता मूल्यांकन और बीज कंपनियों द्वारा क्वालिटी कंट्रोल के लिए भी रास्ता खुलता है। आने वाले वर्षों में यदि यह तकनीक कृषि विश्वविद्यालयों और फसल अनुसंधान केंद्रों में पहुंचती है, तो यह फसल सुधार को लोकतांत्रिक बनाने में बड़ी भूमिका निभा सकती है।
यह वैज्ञानिक प्रगति नीति-निर्माताओं के लिए भी विचारणीय है। यदि कृषि मंत्रालय या ICAR जैसी संस्थाएं इसे अपने राष्ट्रीय बीज सुधार कार्यक्रमों में शामिल करती हैं, तो फसल अनुसंधान को न सिर्फ गति मिलेगी, बल्कि इससे किसान सीधे लाभान्वित होंगे। चूंकि यह तकनीक डेटा आधारित है, यह ‘डिजिटल इंडिया’ और ‘स्मार्ट एग्रीकल्चर’ जैसे लक्ष्यों को भी साकार करने में सहायक होगी।
इस अध्ययन ने यह प्रमाणित किया है कि X-ray इमेजिंग तकनीक कृषि अनुसंधान के भविष्य की दिशा तय कर सकती है। यह विज्ञान और खेती के बीच की दूरी को कम करने का एक सशक्त माध्यम है। नॉन-डिस्ट्रक्टिव तरीकों से की गई जांच न केवल वैज्ञानिक गुणवत्ता सुनिश्चित करती है, बल्कि बीज संरक्षण और दोबारा इस्तेमाल के हिसाब से फायदेमंद है। अगर इसे बड़े पैमाने पर अपनाया गया, तो भारत जैसे देश में यह तकनीक किसानों की आमदनी बढ़ाने और खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकती है।
https://youtu.be/Jlyvwdw7m3g?si=phOlCCPFJn5l9Ro_