By Manoj Bhawuk
छठ पूजा की सबसे बड़ी सुंदरता इसकी लोकभाषा और लोक-संगीत में है। छठी मइया को गीतों में संवाद पसंद है, संस्कृत के गूढ़ मंत्रों में नहीं। यही कारण है कि घर से घाट तक की यात्रा गीतों से भरी होती है
छठ पूजा की सबसे बड़ी सुंदरता इसकी लोकभाषा और लोक-संगीत में है। छठी मइया को गीतों में संवाद पसंद है, संस्कृत के गूढ़ मंत्रों में नहीं। यही कारण है कि घर से घाट तक की यात्रा गीतों से भरी होती है
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छठ पूजा की सबसे बड़ी सुंदरता इसकी लोकभाषा और लोक-संगीत में है। छठी मइया को गीतों में संवाद पसंद है, संस्कृत के गूढ़ मंत्रों में नहीं। यही कारण है कि घर से घाट तक की यात्रा गीतों से भरी होती है
छठ पूजा की सबसे बड़ी सुंदरता इसकी लोकभाषा और लोक-संगीत में है। छठी मइया को गीतों में संवाद पसंद है, संस्कृत के गूढ़ मंत्रों में नहीं। यही कारण है कि घर से घाट तक की यात्रा गीतों से भरी होती है
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छठ पूजा की सबसे बड़ी सुंदरता इसकी लोकभाषा और लोक-संगीत में है। छठी मइया को गीतों में संवाद पसंद है, संस्कृत के गूढ़ मंत्रों में नहीं। यही कारण है कि घर से घाट तक की यात्रा गीतों से भरी होती है
छठ पूजा की सबसे बड़ी सुंदरता इसकी लोकभाषा और लोक-संगीत में है। छठी मइया को गीतों में संवाद पसंद है, संस्कृत के गूढ़ मंत्रों में नहीं। यही कारण है कि घर से घाट तक की यात्रा गीतों से भरी होती है
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छठ पूजा की सबसे बड़ी सुंदरता इसकी लोकभाषा और लोक-संगीत में है। छठी मइया को गीतों में संवाद पसंद है, संस्कृत के गूढ़ मंत्रों में नहीं। यही कारण है कि घर से घाट तक की यात्रा गीतों से भरी होती है
छठ पूजा की सबसे बड़ी सुंदरता इसकी लोकभाषा और लोक-संगीत में है। छठी मइया को गीतों में संवाद पसंद है, संस्कृत के गूढ़ मंत्रों में नहीं। यही कारण है कि घर से घाट तक की यात्रा गीतों से भरी होती है
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छठ पूजा की सबसे बड़ी सुंदरता इसकी लोकभाषा और लोक-संगीत में है। छठी मइया को गीतों में संवाद पसंद है, संस्कृत के गूढ़ मंत्रों में नहीं। यही कारण है कि घर से घाट तक की यात्रा गीतों से भरी होती है
छठ पूजा की सबसे बड़ी सुंदरता इसकी लोकभाषा और लोक-संगीत में है। छठी मइया को गीतों में संवाद पसंद है, संस्कृत के गूढ़ मंत्रों में नहीं। यही कारण है कि घर से घाट तक की यात्रा गीतों से भरी होती है
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कोरोना काल में जब मानव जीवन संकट में पड़ा तो सबको समझ में आया कि पंच तत्व, जिससे जीवन बना है, देह बना है, उससे जुड़ के रहना कितना ज़रूरी है। अपनी मिट्टी से जुड़ के रहना, उसमें लोटना, रोज़ उसको छूना कितना ज़रूरी है। नीम, बरगद, पीपल के छाँव में रहना कितना ज़रूरी है। घाम लोढ़ना कितना ज़रूरी है।
कोरोना काल में जब मानव जीवन संकट में पड़ा तो सबको समझ में आया कि पंच तत्व, जिससे जीवन बना है, देह बना है, उससे जुड़ के रहना कितना ज़रूरी है। अपनी मिट्टी से जुड़ के रहना, उसमें लोटना, रोज़ उसको छूना कितना ज़रूरी है। नीम, बरगद, पीपल के छाँव में रहना कितना ज़रूरी है। घाम लोढ़ना कितना ज़रूरी है।
By Manoj Bhawuk
भिखारी ठाकुर इसलिए अमर और लोकप्रिय हैं, क्योंकि उन्होंने लोक की पीड़ा को महसूस किया और उसे गाया। नारी मन को तो उनसे बेहतर किसी ने आज तक समझा ही नहीं। बेटी बेचवा का गीत – ‘रूपिया गिनाई लिहलस, पगहा धराई दिहलस .. चेरिया के छेरिया बनवलस हो बाबूजी ‘ या 'बिदेसिया के बारहमासा' में एक स्त्री के बारहो महीने और आठों पहर के दुख को जिस तरह से भिखारी ने पकड़ा है, वह किसी और के बस की बात नहीं है। तभी तो किसी विद्वान ने उन्हें ‘भोजपुरी का अनगढ़ हीरा’ कहा, तो किसी ने उन्हें ‘भोजपुरी का शेक्सपियर’ माना।
भिखारी ठाकुर इसलिए अमर और लोकप्रिय हैं, क्योंकि उन्होंने लोक की पीड़ा को महसूस किया और उसे गाया। नारी मन को तो उनसे बेहतर किसी ने आज तक समझा ही नहीं। बेटी बेचवा का गीत – ‘रूपिया गिनाई लिहलस, पगहा धराई दिहलस .. चेरिया के छेरिया बनवलस हो बाबूजी ‘ या 'बिदेसिया के बारहमासा' में एक स्त्री के बारहो महीने और आठों पहर के दुख को जिस तरह से भिखारी ने पकड़ा है, वह किसी और के बस की बात नहीं है। तभी तो किसी विद्वान ने उन्हें ‘भोजपुरी का अनगढ़ हीरा’ कहा, तो किसी ने उन्हें ‘भोजपुरी का शेक्सपियर’ माना।
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