बघेलखंड में ये देसी राखियां भी बांधी जाती हैं

Sachin Tulsa tripathi | Aug 22, 2021, 05:55 IST
बघेलखंड में ये देसी राखियां भी बांधी जाती हैं
मध्य प्रदेश के बघेलखंड के गांवों में आज भी बकौड़ा बांधने की परंपरा है। यह पलाश के पौधे की जड़ से बनी होती है। इस देसी राखी को बहन नहीं भाई लोग एक दूसरे के बांधते हैं।
सतना के पंडित शेषमणि मिश्रा (66 वर्ष) गांव कनेक्शन को बताते हैं "बकौड़ा (पलाश के पौधे के जड़ से बनी राखी) पुरानी परंपरा है। यह मुगल काल के पहले से है। बकौड़ा बांधना आपसी भाईचारे का प्रतीक है। यह अपने से बड़े भाई, पड़ोसी, हितैषी और रिश्तेदारों को बांधी जाती है। बकौड़ा बांधने का मतलब सीधा था यह अपने से बड़ों के प्रति श्रद्धा और सम्मान के लिए है। उनकी रक्षा का सूत्र था।"
यह परंपरा मध्य प्रदेश के बघेलखंड क्षेत्र में आज भी जीवित है। बघेलखंड में सतना, रीवा, सीधी, सिंगरौली जिले आते हैं लेकिन बकौड़ा सतना और रीवा जिले के कुछ इलाक़ों में आज भी चल रही है।
ब्रिटिश इंडिया के समय बघेलखंड एजेंसी हुआ करता था। सन 1871 में बघेलखंड को सबडिवीजन बनाया गया जिसका मुख्यालय सतना था।
बकौड़ा बांधने के बदले जिस व्यक्ति को यह बांधा जाता था तो वह व्यक्ति कुछ उपहार भी देता है। पुराने जमाने में नगद पैसों की कमी थी तो लोग अनाज देते थे।
सतना ज़िला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर स्थित किटहा गांव के राम भइया पांडेय (86 वर्ष) बताते हैं " बकौड़ा का कोई इतिहास नहीं पता लेकिन जमाने से यह चला आ रहा है। पहले गरीबी ज्यादा थी लोगों के पास आय के साधन सीमित थे। इस लिए नगद पैसा देने का चलन नहीं था इस लिए लोग बकौड़ा बांधने के बदले सीधा (आटा, चावल,दाल और नमक) देते थे। आज भी दे रहे हैं।"

पलाश के पौधे और वृक्ष जंगलों में अधिकतर पाया जाता है। इसे जंगल की आग भी कहा गया है। फारेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक मध्य प्रदेश का कुल वन क्षेत्र 77482.49 स्क्वायर किलोमीटर है। जिसमें 6679.02 स्क्वायर किलोमीटर अति घना, 34341. 40 स्क्वायर किलोमीटर मध्यम घना और 36465 खुला वन क्षेत्र है। इन्ही वनों में पलाश के पौधे और वृक्ष ज्यादातर पाए जाते हैं।
शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय किटहा के बायोलॉजी के शिक्षक शिवदत्त त्रिपाठी बताते हैं "
पलाश के पौधे की जड़ को ही बकौड़ा बोला जाता है। इसी के कलाई में बाँधने की लोकपरंपरा है। पलाश का हिंदू मान्यताओं में महत्व है। गाँव मे इसके पत्तों में भोजन परोसने का चलन रहा है। इसका वैज्ञानिक कारण यह था कि पलाश के पत्तों में भोजन रखने से हानिकारक तत्व नष्ट हो जाते हैं। इसकी जड़ रक्त चाप संतुलित रखने में सहायक है।"


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