आदिवासी लड़कियों की पहल बनी मिसाल, खुद की सुरक्षा खुद के हाथ

Madhu Sudan Chatterjee | Aug 04, 2025, 12:41 IST

बंगाल के जंगलमहल में आदिवासी लड़कियों ने आत्मरक्षा को हथियार बना लिया है। एक घटना ने जहां पूरे इलाके को झकझोरा, वहीं लड़कियों ने डर के बजाय लड़ने का रास्ता चुना। जानिए कैसे ये लड़कियां अपने हौसलों से उदाहरण बन रही हैं।

"अगर कोई हम पर हमला करने की कोशिश करता है, तो अब हम जानते हैं कि उसे कैसे जवाब देना है। हम न केवल खुद का बचाव करेंगे, बल्कि ऐसा सबक सिखाएंगे कि वो दोबारा कभी किसी लड़की पर हाथ उठाने की हिम्मत नहीं करेगा, "ये बात आत्मविश्वास से भरी 16 वर्षीय रिया माझी (कक्षा 11) ने पश्चिम बंगाल के जंगलमहल क्षेत्र के केलियापाथर गाँव में गाँव कनेक्शन से बात करते हुए कही। यह गाँव बांकुरा जिले के रानीबांध ब्लॉक में स्थित है, जो जिला मुख्यालय से लगभग 70 किलोमीटर दूर है।
पिछले दस महीनों से यहां के प्राथमिक विद्यालय के मैदान में एक आत्मरक्षा प्रशिक्षण शिविर चल रहा है, जिसमें 200 से अधिक छात्र-छात्राएं भाग ले रहे हैं, जिनमें अधिकांश लड़कियां हैं। कराटे, जूडो और बॉक्सिंग की ट्रेनिंग के साथ-साथ किशोरावस्था में स्वास्थ्य व स्वच्छता से जुड़ी जागरूकता भी दी जाती है। यह पहल अब पूरे बंगाल के लिए प्रेरणा बन चुकी है। छात्राओं का आत्मविश्वास देखते ही बनता है - "अब हम किसी पर निर्भर नहीं, हम खुद अपनी सुरक्षा कर सकते हैं।"
आत्मरक्षा शिविर की शुरुआत क्यों हुई?
"पिछले साल 9 अगस्त को कोलकाता के आर.जी. कर मेडिकल कॉलेज परिसर में एक पीजी छात्रा तिलोत्तमा दीदी के साथ जो बलात्कार और हत्या हुई, उसने हम सबको अंदर तक झकझोर दिया,"रानीबांध की 22 वर्षीय आदिवासी छात्रा अर्चना सरन ने बताया।
वो आगे कहती हैं, "ऐसे मामले कोलकाता से लेकर गाँवों तक हो रहे हैं—बांकुरा, पुरुलिया और झाड़ग्राम तक में। हमें लगा कि अब इंतजार नहीं कर सकते, खुद को मजबूत करना ही होगा।"
जंगलमहल के गाँवों के बीच लंबी दूरी, घने जंगल और पहाड़ी रास्तों से लड़कियों को स्कूल, कॉलेज या बाजार तक अकेले आना-जाना पड़ता है। कई महिलाएं पत्ते और लकड़ी इकट्ठा करने भी गहराई में जंगल जाती हैं। ऐसे में जानवरों के साथ-साथ असामाजिक तत्वों का भी डर बना रहता है। होलुतकनाली हाई स्कूल के प्रधानाध्यापक उत्तम खान कहते हैं, "इन रास्तों में लड़कियों के लिए खतरा और ज्यादा है, इसलिए यह पहल बेहद जरूरी थी।"
कैसे बनी यह मुहिम एक उदाहरण?
रानीबांध की ICDS कार्यकर्ता उषा महतो बताती हैं कि तिलोत्तमा की घटना के बाद गाँव की लड़कियों ने मशाल जुलूस निकाले और आसपास की बस्तियों में आत्मरक्षा शिविरों की शुरुआत के लिए प्रेरित किया। इसके बाद ‘जंगलमहल आत्मरक्षा समन्वय’ संस्था के माध्यम से यह शिविर 29 सितंबर 2024 को केलियापाथर के शहीद खुदीराम बोस विद्यालय परिसर में शुरू हुआ।
इस पहल को स्थानीय लोगों का भरपूर समर्थन मिला। कोई शुल्क नहीं लिया जाता। रानीबांध के देउली गाँव के निवासी 65 वर्षीय जुगल किशोर महतो अपनी चौथी कक्षा में पढ़ने वाली पोती को 15 किलोमीटर दूर से साइकिल से लेकर आते हैं।
झारखंड और बंगाल के जाने-माने कराटे प्रशिक्षक अर्णब औली यहाँ कराटे, जूडो और बॉक्सिंग निःशुल्क सिखाते हैं। वो कहते हैं, "इस तरह का शिविर पूरे बंगाल में और कहीं नहीं है जहाँ इतनी बड़ी संख्या में बच्चे एकसाथ आत्मरक्षा की ट्रेनिंग ले रहे हों।"
लड़कियों का आत्मविश्वास और विस्तार की योजना
धागरा गाँव की नौवीं की छात्रा अनीता सरदार कहती हैं, "हमें शरीर के कमज़ोर हिस्सों के बारे में सिखाया गया है। अगर कोई हमला करे, तो हमें पता है कहाँ वार करना है।" यह आत्मविश्वास दूसरी छात्राओं में भी झलकता है।
शिविर में नियमित स्वास्थ्य जांच होती है। हाल ही में बच्चों ने 1000 मीटर ऊंचे बामनी पहाड़ की ट्रैकिंग भी की। प्रशिक्षण स्थल पर फल और फूलों के पौधे लगाए गए हैं। लड़कियों की फुटबॉल टीम बन चुकी है और जल्द ही क्रिकेट टीम की योजना है।
रिया माझी ने बताया कि केलियापाथर के कुछ प्रशिक्षित छात्र अब 30 किमी दूर इंदपुर ब्लॉक के ब्रह्मंडीहा गांव में नया आत्मरक्षा शिविर चला रहे हैं। जल्द ही पुरुलिया और झाड़ग्राम जिलों में भी ऐसे शिविर शुरू होंगे।
संदेश साफ है—अब जंगलमहल की महिलाएं मानसिक और शारीरिक रूप से आत्मरक्षा के लिए तैयार हैं।
https://youtu.be/TODnF9ztH14
Tags:
  • Bankura news
  • Keliapathar girls
  • self defence training Bengal
  • tribal girls empowerment India
  • West Bengal Self Defence Camp
  • आत्मरक्षा शिविर
  • जंगलमहल सुरक्षा
  • बंगाल की आदिवासी लड़कियां
  • लड़कियों की ट्रेनिंग