अब खेती होगी संतुलित: यूरिया के बजाय जैविक और नैनो उर्वरकों पर ज़ोर

Gaon Connection | Aug 07, 2025, 15:35 IST
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भारत सरकार ने अब खेती में केवल अधिक उत्पादन नहीं, बल्कि मिट्टी की दीर्घकालिक उर्वरता और पर्यावरणीय संतुलन को ध्यान में रखते हुए यूरिया जैसे रासायनिक उर्वरकों के विवेकपूर्ण उपयोग पर ज़ोर देना शुरू किया है।
किसानों को सिर्फ अधिक उत्पादन की नहीं, बल्कि मिट्टी की सेहत और टिकाऊ खेती की राह भी दिख रही है। यूरिया जैसे रासायनिक उर्वरकों की अंधाधुंध खपत को नियंत्रित करने के लिए सरकार ने पीएम-प्रणाम योजना, मृदा स्वास्थ्य कार्ड और जैविक खेती को बढ़ावा देने की दिशा में कई ठोस कदम उठाए हैं।
यूरिया का अधिक उपयोग: उपज तो बढ़ी, लेकिन ज़मीन थक गई
भारत, दुनिया के शीर्ष यूरिया उपभोक्ता देशों में से एक है। लंबे समय से किसानों ने उत्पादन बढ़ाने के लिए यूरिया और अन्य रासायनिक उर्वरकों का भारी मात्रा में उपयोग किया है। लेकिन इसका असर मिट्टी की संरचना, उसकी जैविक गतिविधि, पानी की गुणवत्ता और पर्यावरण पर पड़ा है।
ज्यादा यूरिया से:
मिट्टी की pH असंतुलित हो जाती है
सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी होने लगती है
जल स्रोतों में नाइट्रेट प्रदूषण बढ़ता है
फसल की गुणवत्ता घटती है
इसलिए भारत सरकार अब "स्मार्ट फार्मिंग" की ओर बढ़ रही है।
मृदा स्वास्थ्य कार्ड: मिट्टी को जानिए, सही पोषण दीजिए
2014 में शुरू की गई "मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना" का उद्देश्य है कि किसान अपनी ज़मीन की पोषक गुणवत्ता को समझकर ही उर्वरकों का इस्तेमाल करें।
अब तक के आँकड़े:
25.13 करोड़ मृदा स्वास्थ्य कार्ड जारी
93781 किसान प्रशिक्षण कार्यक्रम
6.80 लाख नमूना प्रदर्शन
7425 किसान मेले और अभियान
मिट्टी के नमूनों में pH, कार्बनिक कार्बन, नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटैशियम, सल्फर, जिंक, लोहा, बोरॉन, मैंगनीज़ जैसे तत्वों की मात्रा मापी जाती है। कार्ड में किसान को बताया जाता है कि उसके खेत में कौन सा उर्वरक कितना डालना चाहिए।
वैकल्पिक उर्वरकों को मिला कानूनी दर्जा
सरकार ने "उर्वरक नियंत्रण आदेश 1985" में बदलाव करके कई वैकल्पिक उर्वरकों को अधिसूचित किया है:
जैविक खाद
जैव-उर्वरक
डी-ऑइल केक
जैविक कार्बनिक वर्धक
नैनो यूरिया और नैनो डीएपी
नैनो यूरिया का उपयोग बहुत कम मात्रा में होता है लेकिन इसका असर ज्यादा होता है। यह सीधे पत्तियों द्वारा अवशोषित होता है, जिससे खपत घटती है और उत्पादन बना रहता है।
https://youtu.be/-jmMgQS4VcQ पीएम-प्रणाम योजना: समझदारी का फायदा मिलेगा नकद में
2023 में शुरू की गई PM-PRANAM योजना का उद्देश्य है कि रासायनिक उर्वरकों (यूरिया, DAP, MOP आदि) की खपत कम की जाए और जैविक या वैकल्पिक उर्वरकों को बढ़ावा दिया जाए।
योजना के मुख्य बिंदु:
यदि कोई राज्य या केंद्रशासित प्रदेश पिछले तीन वर्षों की औसत खपत से कम यूरिया आदि का उपयोग करता है
तो सरकार बची हुई सब्सिडी का 50% हिस्सा उस राज्य को प्रोत्साहन राशि के रूप में देती है
यह राशि किसानों को जागरूक करने, जैविक खेती के प्रशिक्षण और इनपुट सब्सिडी में उपयोग की जाती है।
जैविक खेती को बढ़ावा: PKVY और MOVCDNER योजनाएं
भारत सरकार किसानों को धीरे-धीरे जैविक खेती की ओर मोड़ रही है।
परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY):
देश के सभी राज्यों में लागू
3 साल में ₹31,500/हेक्टेयर की सहायता
जिसमें से ₹15,000 DBT के माध्यम से सीधे किसानों को दिए जाते हैं
मिशन ऑर्गेनिक वैल्यू चेन डेवलपमेंट फॉर नॉर्थ ईस्ट (MOVCDNER):
विशेष रूप से पूर्वोत्तर राज्यों के लिए
3 साल में ₹46,500/हेक्टेयर की सहायता
इसमें से ₹32,500 जैविक इनपुट्स हेतु, और ₹15,000 DBT में
इन योजनाओं का उद्देश्य है कि खेती टिकाऊ हो, मिट्टी की सेहत बनी रहे और किसान को रसायनों पर निर्भर न रहना पड़े।
आर्थिक और पर्यावरणीय फायदे भी
यूरिया जैसे उर्वरकों का विवेकपूर्ण उपयोग और जैविक विकल्पों को अपनाने से:
किसानों की लागत कम होगी
मिट्टी लंबे समय तक उपजाऊ बनी रहेगी
पानी की गुणवत्ता सुधरेगी
स्वास्थ्य जोखिम घटेंगे
देश की उर्वरक सब्सिडी पर बोझ कम होगा
खेती में अब ज़रूरी है विज्ञान और समझदारी का संतुलन
भारत सरकार की नीतियाँ यह स्पष्ट संकेत देती हैं कि अब खेती में केवल अधिक उत्पादन नहीं, बल्कि मिट्टी, पर्यावरण और किसान की आर्थिक सुरक्षा को भी बराबर महत्व दिया जा रहा है। यूरिया के विवेकपूर्ण उपयोग, जैविक खेती और पोषण प्रबंधन के जरिए भारत की खेती अब एक नई दिशा की ओर बढ़ रही है—जहाँ खेत भी हरे रहें, किसान भी ख़ुश रहें और धरती माँ भी स्वस्थ रहे।
https://youtu.be/WXjVKnCaFmM

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