वाराणसी के निषादराज घाट से उठती चैती और ठुमरी की गूँज

Divendra Singh | Apr 02, 2025, 13:02 IST
bhumi nishad boatman singer varanasi
वाराणसी के 84 घाटों पर हर रोज़ हज़ारों कहानियाँ बिखरी रहती हैं, लेकिन निषादराज घाट पर एक अनोखी धुन बहती है—भूमि निषाद की गाई ठुमरी और चैती। 64 साल के भूमि निषाद बरसों से गंगा में नाव चलाने के साथ-साथ सुरों की गंगा भी बहा रहे हैं। गुरु से नहीं, बल्कि गंगा मैया से सीखा उनका संगीत पर्यटकों को मंत्रमुग्ध कर देता है।
वाराणसी, जिसे काशी या बनारस के नाम से भी जाना जाता है, अतीत और वर्तमान का एक अनूठा संगम है। जहाँ दुनिया भर से आए लोग गलियों में भटकते मिल जाएंगे, यहाँ गंगा के 84 घाटों पर आपको अलग-अलग कहानियाँ मिल जाएंगी, यहीं के निषादराज घाट पर रहते हैं भूमि निषाद, अगर आपकी किस्मत अच्छी रही तो इनकी चैती और ठुमरी आपको भी सुनने को मिल जाएगी।
बरसों से यहाँ के निषाद समुदाय के लोग पर्यटकों और श्रद्धालुओं को गंगा नदी की सैर कराते और कहानियाँ सुनाते आ रहे हैं, 64 साल के भूमि निषाद भी तो उन्हीं में से एक हैं, लेकिन ये कहानियों के साथ गीत भी सुनाते हैं।
कई नाविकों से भूमि का पता पूछते हम भी पहुँचे थे, ये यहाँ के घाटों पर मशहूर हैं, तेज़ धूप में जब कई सीढ़ियाँ चढ़ कर निषादराज मंदिर के नीचे पहुँचे तो राम लखन निषाद मिले, तो पता चला की भूमि तो अभी कुछ देर पहले गंगा के उस पार कछार के अपने खेत से लौटे हैं, कई बार आवाज़ देने पर भूमि आए, तो लगा ही नहीं की इनसे पहली बार मुलाकात हुई है।
खुद को गंगा मैया का बेटा कहने वाले भूमि ने किसी गुरु से संगीत की शिक्षा नहीं ली है, बल्कि गंगा मैया ने ही तो उन्हें संगीत उपहार में दिया है।
लाल शर्ट में पसीने में भीगे भूमि निषाद अपनी कहानी बताने लगे, “जो भी सीखा है, यहीं गंगा मैया से ही तो सीखा है, शुरू-शुरू में ऐसे ही गुनगुनाता रहता था, धीरे-धीरे लोगों को पसंद आने लगा, अब तो दूर-दूर से लोग मेरा पता पूछते हुए आ जाते हैं।”
एक समय था जब यहाँ पर सिर्फ चप्पू वाली नाव ही थीं, लेकिन अब यहाँ पर मोटर वाली बड़ी-बड़ी नाव आ गईं हैं। भूमि अब भी चप्पू वाली नाव चलाते हैं, साल भर नाव चलाते हैं और जब बाढ़ के बाद गंगा के उस पार पानी कम हो जाता है तो कछार में सब्जियों की खेती करते हैं।
भूमि आगे कहते हैं, “म से मछली और म मछुआरा, ये जो आप धरती देख रहे हैं ये सब मछुआरों की ही धरती है, यहीं से तो कमाते और खाते हैं, हम बरसों से तो यही करते आ रहे हैं, गंगा मैया के भरोसे ही तो हमारी ज़िंदगी चली जा रही है, हम इसे कैसे छोड़ सकते हैं।”
भूमि के परिवार में उनके दो बेटे चंदन, रजा और दो बेटियाँ प्रीति, अंजना हैं, बड़ी बेटी अंजना का ब्याह कर दिया है, भूमि आगे कहते हैं, “हमारे बच्चे ये नहीं करना चाहते, उन्हें समझाता हूँ कि यही तो हमारी ज़िंदगी है इसे कभी मत छोड़ना। मैंने तो साथ में खेती भी कर लेता हूँ, पिछले कुछ साल से खेती में भी उतना फायदा नहीं हो रहा।"
लेकिन बहुत सारे ऐसे भी लोग हैं जो नाविक का काम छोड़कर दूसरे काम करने लगे हैं, राम लखन निषाद की भी पूरी ज़िंदगी नाव चलाते बीत गई, लेकिन उनका बेटा अब ई-रिक्शा चलाता है। राम लखन बताते हैं, “मैंने तो अपनी पूरी ज़िंदगी गंगा मैया के नाम कर दी, लेकिन मेरा बेटा ये काम नहीं करना चाहता, उसे टोटो (ई-रिक्शा) खरीदकर दे दिया है, वो उसी में खुश है।”
यहाँ के घाट पर ऐसे सैकड़ों भूमि और राम लखन हैं, जिन्होंने अपना पूरा जीवन नाव और गंगा में बिता दिया, लेकिन उनकी आने वाली पीढ़ी अब इससे दूर जा रही है। राम लखन आगे कहते हैं, "हम लोग तो गंगा मैया से खुद दूर ही नहीं कर सकते, बचपन से यही करते आ रहे हैं, अब कहाँ छोड़ देंगे।"
अगली बार आप भी कभी बनारस जाइएगा तो निषादराज घाट पर भूमि निषाद से ज़रूर मिलिएगा, अगर किस्मत अच्छी रही तो ठुमरी और चैती भी सुनने को मिल जाएगी।
https://youtu.be/k4JocHMfD9w

    Follow us
    Contact
    • FC6, Times Internet Ltd., Film City, Noida.
    • app.publishstory.co